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47th Day :: Sab Bikta Hai

ये कुछ लाइन मैंने बाजारवाद को स्पष्ट करने के लिए लिखी हैं। उम्मीद है आपको पसंद आएँगी। कभी खामोश आँखें तो कभी किसी का लब बिकता है, ये दुनिया का बाज़ार है यहाँ सब बिकता है।  सिर्फ खास time पर नहीं जब चाहो तब बिकता है, केवल धरती ही नहीं 'नभ' बिकता है।  कभी दयावान समाजसेवी तो कभी कोई क्रिमिनल 'बेरहम' बिकता है, कभी डरे हुए लोग तो कभी जिगर का 'दम' बिकता है। कभी शान्ति-समझौता तो कभी गोली-बम बिकता है, कभी दंगे से पैदा डर तो कभी तकलीफों के घाव पर सहानुभूति का 'मरहम' बिकता है । क्योंकि ये दुनिया का बाज़ार है , यहाँ  सब बिकता  है।  कभी Dirty Picture का ब्लाउज तो कभी britney का चबाया हुआ 'chewingum' बिकता है, कभी किसी सेलेब्रिटी के चेहरे की बनावटी मुस्कान तो कभी असली आँखें 'नम' बिकता है। कभी 3 साल से पड़ा सूखा तो कभी बारिश झमाझम बिकता है, कभी उजाला तो कभी घनघोर 'तम' बिकता है। क्योंकि ये  दुनिया का बाज़ार है यहाँ सब बिकता है। कहीं कोई धन्नासेठ छप्पन भोग खाते और पीते हुए 'रम' बिकता है , तो कहीं रात को कोई गरीब दो दिन से