42nd Day :: Power management & leadership

दुनिया में power के कई केन्द्र हैं। किसी के पास  पैसे की , किसी के पास बाहुबल की , कोई politics में महारत रखता है तो कोई जनमत जुटाने में , कोई ऐसा डॉक्टर है जो बड़ी से बड़ी बीमारियाँ ठीक कर सकता है तो कोई पलक झपकते ही किसी भी देश में महामारी फैला सकता है। कोई हथियार बनाने और बेचने में उस्ताद है तो कोई शांति-प्रक्रिया  के द्वारा बिना हथियार उठाये ही जंग जीतने में निपुण। किसी के पास ऐसी मीडिया की ताकत है जो सच को कहीं से भी खोदकर निकालने में सक्षम है तो कोई इतना बड़ा lawer (i will prefer to call as 'Lier' ) है जो बड़े से बड़े सच को भी झूठ  साबित कर देता है। 
कुल मिलाकर दुनिया में अच्छी और बुरी कई तरह की ताकतें हैं। बुरी ताकतों के मालिक का उद्देश्य गलत होता है इसलिए वो सही ताकत को भी गलत तरीके से इस्तेमाल करके लोगों से लाभ लेने की कोशिश में लगे रहते हैं लेकिन उन्हें ये पता नहीं होता की हमारा personal फायदा सबसे ज्यादा तब होता है जब हम खुद से पहले दूसरों के फायदे की बात सोचते हैं। ऐसे लोग अक्सर कालिदास की तरह होते हैं जो अनजाने में वही डाल काट रहे होते हैं जिसपर वो बैठे होते हैं।
 इनका उदाहरण criminal network हैं जिनका मुख्य rule होता है कि किसी तरह से ऊपर पहुँचना, चाहे इसके लिए अपने से ऊपर वाले को काटना ही पड़े नतीजा यह होता है कि ऐसे network में नीचे से  ऊपर तक एक दुसरे को मारने-काटने का क्रम चलता रहता है और एक दिन वो भी आता है जब ये नियम सिखाने वाला भी किसी नीचे वाले के द्वारा मारा  जाता है। इस तरह नेत्रित्व कर रहा व्यक्ति खुद अपने सहयोगियों को अपना ही गला काटने की सुपारी दे रहा होता है और खुद को बहुत अक्लमंद और ताकतवर समझता है । ऐसा नेटवर्क अगर कुछ समय तक एकजुट भी रहता है तो केवल विरोधियों के सफाए तक ही लेकिन उसके बाद आपस में ही लड़ मरते हैं। बड़े स्तर पर देखें तो पकिस्तान का लगातार तख्तापलट इसी का एक उदाहरण है,वो तभी तक एकजुट रहते हैं जब तक भारत का विरोध करते हैं ।
 वहीँ अच्छे संगठन का नेता अपने सहयोगियों को अपनी properties बढाकर आगे बढ़ने को प्रोत्साहित करता है जिसका ससे बड़ा फायदा यह होता है कि टॉप पर चाहे जो भी हो तरक्की सबकी होती है और संगठन की overall तरक्की ज़रूर होती है। 
एक अच्छे leader की common qualities तो सभी जानते है जैसे कि वो प्रभाव छोड़ने वाला, वाक्पटु , स्पष्टवादी , ईमानदार , समझदार , साहसी और दूरदर्शी आदि होना चाहिए लेकिन मेरे ख्याल से कुछ विशेष  गुण ज़रूर होना चाहिए जैसे संगठन का  आधार केवल सही और गलत हो न कि कुछ और।  मतलब कि अगर हमारा दुश्मन सही है तो उसके छोटा होने पर भी उससे माफ़ी माँगने को तैयार रहना चाहिए और अगर कोई अपना गलत हो तो उसे भी सज़ा  देकर सुधारने या न सुधरने पर उसे संगठन से निकालने  जैसा कठोर कदम उठाने को भी तैयार रहना चाहिए । वर्तमान में अधिकतर लड़ाइयाँ इसलिए होती हैं क्योंकि हम ये मानकर चलते हैं कि अगर कोई हमारा दोस्त है तो उसकी हर लड़ाई में उसका साथ देना है चाहे वो कितना ही गलत क्यों न हो ,जबकि  हमें अपने दोस्त को उसकी गलती बताकर उसे सुधारने के लिए कहना चाहिए। दूसरा कि बड़े से बड़े दुश्मन से  लड़ते हुए भी किसी भी STAGE पर बातचीत के जरिये मामले का सम्पूर्ण समाधान निकालने का एक रास्ता जरूर खुला रखना चाहिए अगर दुश्मन का अपराध ज़रा सा भी क्षमायोग्य हो। मेरी LIFE में भी समस्या के रूप में ही सही लेकिन नेतृत्व करने का एक मौका आया था लेकिन मैंने अपनों को HANDLE न कर पाने की अपनी कमजोरी को जानते हुए नेतृत्व न करने का फैसला किया क्योंकि मुझे लगता था कि बिना  क्षमता के नेतृत्व करने पर मेरे साथ-साथ बाकियों की भी पढ़ाई बर्बाद हो जायेगी,उस समय तक मैं केवल लोगों को 'न' कहना सीख रहा था ।
संगठन के धार्मिक होने पर एक समस्या और आती है कि ऐसे  में एक संगठन देवता के रूप में परिभाषित हो जाता है तो दूसरा राक्षस के रूप में। ये एक ऐसी स्थिति होती है जिसमें बातचीत की कोई भी गुन्जाईस नहीं बचती। 'देवता' शब्द का व्यावहारिक अर्थ है कोई ऐसा जो कभी गलत न हो और 'राक्षस' शब्द का अर्थ है कि कोई ऐसा जो कभी सही न हो,जिसे सुधारना कभी संभव न हो और जिसका खात्मा  ही एकमात्र SOLUTION हो। लेकिन हम जानते हैं कि 'NOTHING IS PERFECT IN THIS IMPERFECT WORLD'. कम से कम इस दुनिया में तो कोई आदमी न तो १००% सही ही हो सकता है न १००% गलत। इसीलिए कई संगठनों या देशों की लड़ाई जो देवता बनाम राक्षस हो जाती है , उनका कभी SOLUTION नहीं निकलता, लोग मरते जाते हैं लेकिन बुराई नहीं ।
उदाहरण के लिए जिस व्यक्ति को आप राक्षस बताकर मार रहे हैं उसके परिवार के किसी बच्चे को बदले की आग में जलने से  से कैसे  रोक पायेंगे और क्या फिर आप उसे समझा पाएँगे ? कम से कम उस बच्चे को समझाना , उस 'राक्षस' को समझाकर रास्ते पर लाने से निश्चय ही कठिन होगा। (यही वजह है कि दुनिया में कई अच्छे संगठन या देश,जिनका मूल उद्देश्य शान्ति और विकास है,वे भी आपस में लड़ते रहते हैं क्योंकि वो अपना घमण्ड नहीं छोड़ पाते या अपने संबंधों का आधार सही-गलत न रखकर कुछ और रखते हैं या ऐसी ही कुछ और छोटी-छोटी बातें वजह बन जाती  हैं।)
यही ज़रा सा फर्क था राम और बुद्ध में। राम ने जहाँ कैकेयी के वरदान से मजबूर होकर अपना राजमहल छोड़ा  वहीं बुद्ध ने दूसरों का दुःख-दर्द सहन  न कर पाने और उसे दूर करने के लिए स्वेच्छा से अपना राजमहल छोड़ा। राम ने जहाँ रावण को मारकर 'बुराई पर अच्छाई की जीत' का उदाहरण पेश किया वहीं बुद्ध ने अंगुलिमाल को वाल्मीकि में बदलकर 'बुराई को अच्छाई' में बदलने का बेहतर उदाहरण पेश किया। जहाँ राम सम्पूर्ण भारत पर शासन करने वाले राजा बने वहीं पूरे भारत को जीतने वाला सम्राट अशोक अपने पापों का प्रायश्चित करने और शान्ति पाने के लिए बुद्ध की शरण में आया। जहाँ राम ने सीता के चरित्र की जाँच के लिए उनकी 'अग्निपरीक्षा' ली वहीं बुद्ध ने बौद्ध भिक्षुओं के लिए स्त्री-स्पर्श वर्जित होते हुए भी एक शिष्य के द्वारा एक स्त्री को उठाकर नदी पार कराने पर उसको आशीर्वाद देकर  एक अच्छा उदाहरण दिया क्योंकि वो जानते थे कि उस बौद्ध भिक्षु की मनोदशा बुरी नहीं थी। एक और बात अगर राम की जगह बुद्ध रावण के सामने रहे होते तो शायद आज समुद्र का पानी मीठा होता जो रावण करना चाहता था और कुछ और अच्छी चीजों के साथ शायद वाल्मीकि की तरह एक और  महाकाव्य लिखने वाला होता जो कोई और नहीं रावण ही होता।
वैसे हमें दोनों की जरूरत है।
एक तरफ सीमा पर राम, जो बड़े से बड़े रावण को सीमा पर ही ढेर कर दे तो दूसरी तरफ सीमा के भीतर बुद्ध, जो देश के भीतर बड़े से बड़े अंगुलिमाल को वाल्मीकि में बदल सकें।

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