39th Day :: The Cow Vs The Cow type Girl

हमारे देश में गाय की बहुत ही महत्ता है। गाय के दूध से लेकर गोबर तक को पवित्र माना जाता है। इसीलिए गाय की पूजा की जाती है। गाय जैसी लड़की को भी हमारे यहाँ बहुत सम्मान की नज़र से देखा जाता है।गाय और गाय जैसी लड़की में बहुत समानतायें हैं।दोनों को बचपन से ही खूंटे से बाँधकर रखा जाता है। दोनों को देवी का दर्ज़ा दिया जाता है, लेकिन यह दर्ज़ा तब तक रहता है जब तक की गाय बिना लात मारे दूध देती रहे और गाय जैसी लड़की बिना किसी शिकायत के चुपचाप घर का सारा काम करती रहे और दूसरों के फैसले में अपना दखल न दे । जैसे ही गाय जैसी लड़की काम करने से मना करती है वो गाय की ही तरह देवी से पशु मान ली जाती हैं और फिर उसके साथ पशु के समान ही बर्ताव किया जाता है। गाय जैसी लड़की के साथ पशु जैसा व्यवहार करने की और भी वजहें हो सकती हैं, जैसे कि वह हर अच्छी-बुरी बात को चुपचाप न सुनकर अपनी राय जाहिर कर दे या या गाय की ही तरह घर का बचा-खुचा और बासी खान खाने से इंकार कर दे या भाई की तरह नए कपडे खरीदने या बाहर घूमने-खेलने की जिद कर ले या ज्यादा पढने की जिद कर ले या अपना जीवनसाथी खुद चुनने की बात कर दे या माँ-बाप के चुने हुए पैसे वाले लड़के से शादी करने से इनकार कर दे  दहेज़ दे कर शादी करने से मना कर दे या फिर ससुराल में पति,ननद,जेठान,सास-ससुर के तानों को सुनने से इंकार कर दे या फिर अपने पति को परमेश्वर की बजाय दोस्त बन्ने की सलाह दे दे और पति की हाँ में हाँ मिलाते हुए हर सही-गलत बात को सही ठहराने की बजाय वास्तव में जो सही हो उसे कहने की हिम्मत करे या किसी पुरूष से थोड़ी सी भी बातचीत कर ले ।
 गाय और गाय जैसी लड़की में कुछ भिन्नता भी है जो हमारे समाज के सच और अधिकतर लड़कियों की वास्तविक स्थिति को दर्शाने के लिए पर्याप्त है।
  1. गाय के पैदा होने पर ख़ुशी मनाई जाती है जबकि उससे कई गुना ज्यादा काम आने वाली लड़की के पैदा होने पर इतना दुःख कि कई बार जन्म देने वाली माँ को ही मार डाला जाता है और कई बार गर्भ में ही लड़की को समाप्त कर दिया जाता है। 
  2. गाय को बेचने पर पैसा मिलता है जबकि उससे कई गुना अधिक उपयोगी(मायके और ससुराल दोनों के लिए)  लड़की के लिए पैसे देकर दूल्हा खरीदना पड़ता है।
इन सब से लड़कियों की वास्तविक स्थिति के बारे में अंदाजा लगता है। वास्तव में हमारे देश में 'सुशील' शब्द की आड़ में लड़कियों को एक विशेष प्रकार की मानसिक बेडी पहनाकर उनसे एक बंधुआ मजदूर की तरह काम लिया जाता है। सच्चाई यही है कि लड़कियों को जिंदगीभर बंधुआ मजदूर ही समझा जाता है। नौकरों के साथ इतना बुरा बर्ताव नहीं किया जाता, जितना उनके साथ किया जाता है। मायके में यह समझाकर काम लिया जाता है की ससुराल में जाकर काम करना है इसलिए सीखने के लिए यहाँ करना जरूरी है और ससुराल जाते ही बहू को काम की सारी जिम्मेदारी देकर परिवार के सारे सदस्य खुद बस सेवा करवाने को ही अपनी जिम्मेदारी समझने लगते हैं 
आज कई औरतें आदमियों के साथ बराबरी  करना चाहती  हैं मगर इसके लिए उन्हें अपने अधिकारों के लिए लड़ना जरूरी है और इसकी शुरुआत बचपन से ही करनी होगी। इस लड़ाई में औरतों का साथ घर की दूसरी औरतें ही दे सकती हैं (वर्तमान में तो औरतें ही औरतों के रास्ते की सबसे बड़ी रूकावट हैं) जैसे कि मायके में लड़की की माँ और ससुराल में सास ।  ये दोनों अगर मायके और ससुराल में परिवार के सभी सदस्यों में घर और काम की जिम्मेदारी बाँट दें तो मायके में लड़की और ससुराल में बहू का बोझ बहुत हद तक कम हो जाएगा।
मेरा मानना है कि किसी भी परिवार में घर के हर सक्षम सदस्य की बराबर की जिम्मेदारी बनती है ,बेटी या बहू को ही हर जिम्मेदारी का ठेका नहीं दे देना चाहिए और इसीलिए परिवार के हर सदस्य को अपनी भावनाएँ व्यक्त करने के लिए समान आजादी मिलनी चाहिए।

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