32nd Day :: Curse of being 'General'

आजकल जब हर नेता या socialist Sc , St , अल्पसंख्यकों और पिछड़ों के आरक्षण को बढ़ाने की बात कर रहे हैं, ऐसे समय में मैं general categary के दर्द को बयाँ करने की हिम्मत कर रहा हूँ।
आजकल चुनाव-दर-चुनाव इन वर्गों के कथित हिमायती नेता इस आरक्षण को बढ़ाने की बात करके अपना वोट-बैंक पक्का करने की जुगत में लगे रहते हैं। लेकिन क्या इन्हें जरा भी अहसास है कि general categary के लोगों को इससे कितनी समस्या हो रही है?
पहले पढ़ाई में छात्रवृत्ति, admission में आरक्षण, फिर competitive exams में 5-10 % की छूट। next is what ?  आरक्षण का % बढ़ाना, गैस के दाम में छूट  फिर राशन, बिजली, गैस आदि की लाइन में इन वर्गों को वरीयता देना आदि। सोचिये जरा आपको कैसा लगेगा अगर आप 3 घंटे से गैस लेने के लिए लाइन में लगे हों और तभी तुरंत आये किसी व्यक्ति को आपके आगे कर दिया जाय सिर्फ इस आधार पर क्योंकि उसने 'Rupa frontline' पहना हो!
और यह सब तब है जब अधिकतर tax, general categary के लोगों द्वारा भरा जाता है जिससे सरकार चलती है। यह स्थिति कुछ ऐसी है जैसे कोई व्यक्ति होटल में दूसरों का बिल भरे फिर भी उसे सबसे बाद में और कम मात्रा में भोजन दिया जाय। क्या इससे general categary के लोगों में कुण्ठा और निम्न वर्ग के प्रति द्वेष की भावना नहीं पैदा होती?
general categary की कुण्ठा को अगर अभी नहीं समझा गया और इसे दूर करने का प्रयास नहीं किया गया तो सिर्फ 1-2 दशक में ही general वर्ग और निम्न वर्ग के बीच टकराव की स्थिति पैदा हो जाएगी और यह टकराव हमारे देश को कई दशक पीछे ले जाएगा।
स्वयं डा. भीमराव अम्बेडकर,जिन्होंने संविधान बनाया था,ने भी आरक्षण को इतने व्यापक तौर पर और इतने अधिक  समय तक लागू करने की बात नहीं सोची थी, उनके अनुसार भी ये 1-2 दशक पहले ही समाप्त हो जाना चाहिए था। मगर कुछ तो निम्न वर्ग के पर्याप्त विकास न कर पाने तो कुछ वोट-बैंक की राजनीति के कारण इसे ज्यादा समय के लिए और ज्यादा मात्रा में लागू किया जा रहा है ।
ऐसा नहीं है कि आरक्षण general categary को ही नुकसान पहुँचा रहा है, ये निम्न वर्ग के आत्मनिर्भर बनने में भी बाधक है-
e.g.
  1. छोटे बच्चे को उसका अभिभावक थोड़े समय के लिए अपनी उँगली पकड़ाकर चलाता है फिर उँगली छोड़ देता है  जिससे वो खुद से चलना सीख सके।
  2. थोड़ा बड़ा होने पर जब कोई साइकिल चलाना सीख रहा होता है तो सिखाने वाला कुछ समय तक पीछे से साइकिल पकड़े रहता है और सही मौका देखकर बिना बताये साइकिल छोड़ देता है जिससे चलाने वाला खुद से साइकिल चलाना सीख सके।

इस समस्या के समाधान के रूप में मेरे कुछ सुझाव हैं :-
  1. वर्तमान व्यापक आरक्षण का लाभ सिर्फ विकलांगों को ही देना चाहिए। कुछ दशकों तक इसे महिलाओं के लिए भी जारी रखा जा सकता है।
  2. बाकी वर्गों को आरक्षण का लाभ आर्थिक आधार पर देना चाहिए न कि जातिगत आधार पर। इसका लाभ यह होगा कि निम्न वर्ग के अधिकतर लोग तो आरक्षण का लाभ पायेंगे ही साथ ही general categary के भी गरीब लोग इसका लाभ पा सकेंगे जिससे किसी वर्ग में कुण्ठा या आपसी द्वेष नहीं होगा ।  इससे इन वर्गों के बीच टकराव की स्थिति नहीं उत्पन्न होगी।
  3. शिक्षा सभी वर्गों के लिए जरूरी है। ये एक ऐसी सीढ़ी है जो सभी वर्गों को जोड़ सकती है और जिसपर चढ़कर अपनी मेहनत और लगन के बल पर हर वर्ग के लोग ऊँचे से ऊँचा मुकाम हासिल कर सकते हैं ।  इसलिए हमें हर वर्ग के अधिक से अधिक लोगों को शिक्षा से जोड़ने और शिक्षा की गुणवत्ता बढाने का प्रयास करना चाहिए। इसके बाद आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों के लिए पर्याप्त छात्रवृत्ति की व्यवस्था करनी चाहिए। आखिर डा. भीमराव अम्बेडकर भी विषम परिस्थितियों में भी शिक्षा की डोर पकड़कर ही अपनी तरक्की किये जिससे उन्हें उस दौर में भी संविधान-निर्माण जैसी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी मिली।
  4. नौकरिओं और promotion आदि में आरक्षण की जगह हमें निम्न वर्ग के लिए मुफ्त में विशेष training  की व्यवस्था करनी चाहिए जिससे उनमें नौकरी और promotion पाने की स्वाभाविक ability develop हो सके और वो जल्दी-से-जल्दी अपने पैरों पर खड़े हो सकें। वर्तमान आरक्षण व्यवस्था का एक दुष्परिणाम ये भी है कि इससे कंपनियों में अपेक्षाकृत कम कुशल लोगों की भर्ती हो जाती है जो उस कम्पनी की क्षमता को कमजोर करते हैं और जिसकी वजह से देश की अर्थव्यवस्था भी कुछ हद तक कमजोर होती है।

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