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Showing posts from January, 2013

32nd Day :: Curse of being 'General'

आजकल जब हर नेता या socialist Sc , St , अल्पसंख्यकों और पिछड़ों के आरक्षण को बढ़ाने की बात कर रहे हैं, ऐसे समय में मैं general categary के दर्द को बयाँ करने की हिम्मत कर रहा हूँ। आजकल चुनाव-दर-चुनाव इन वर्गों के कथित हिमायती नेता इस आरक्षण को बढ़ाने की बात करके अपना वोट-बैंक पक्का करने की जुगत में लगे रहते हैं। लेकिन क्या इन्हें जरा भी अहसास है कि general categary के लोगों को इससे कितनी समस्या हो रही है? पहले पढ़ाई में छात्रवृत्ति, admission में आरक्षण, फिर competitive exams में 5-10 % की छूट। next is what ?  आरक्षण का % बढ़ाना, गैस के दाम में छूट  फिर राशन, बिजली, गैस आदि की लाइन में इन वर्गों को वरीयता देना आदि। सोचिये जरा आपको कैसा लगेगा अगर आप 3 घंटे से गैस लेने के लिए लाइन में लगे हों और तभी तुरंत आये किसी व्यक्ति को आपके आगे कर दिया जाय सिर्फ इस आधार पर क्योंकि उसने 'Rupa frontline' पहना हो! और यह सब तब है जब अधिकतर tax, general categary के लोगों द्वारा भरा जाता है जिससे सरकार चलती है। यह स्थिति कुछ ऐसी है जैसे कोई व्यक्ति होटल में दूसरों का बिल भरे फिर भी उसे सबसे बाद में

Kuch yaad unhe bhi kar lo jo laut ke ghar naa aaye...

पाक द्वारा फिर दो भारतीय सैनिकों की बर्बरता के साथ हत्या कर दी गयी। पाक की यह हरकत नयी नहीं है, पहले भी वह भारत के शांति-बहाली के प्रयासों को कमजोरी समझकर कारगिल युद्ध छेड़ चुका है लेकिन भारत उसकी इस हरकत का मुंहतोड़ जवाब देने के बजाय मामले को विश्व समुदाय के सामने रखने की बात कर रहा है । क्या कारगिल-युद्ध के बाद भी विश्व को कोई और सबूत देने की ज़रुरत है जिससे पाकिस्तान की नापाक सोच ज़ाहिर हो सके ? और आखिर कारगिल युद्ध के समय अन्तर्राष्ट्रीय नियम तोड़ने पर थोड़े समय के आर्थिक प्रतिबन्ध के अलावा पाक के खिलाफ क्या कोई प्रभावी कदम विश्व-समुदाय ने उठाया ? फिर हम विश्व-समुदाय की चिन्ता क्यों करते हैं? हम क्यों अमेरिका की तरह निर्णायक कार्रवाई क्यों नहीं करते? बेशक युद्ध से अशान्ति फैलती हो मगर कभी-2 ये शान्ति पाने के लिए भी जरूरी हो जाता है।  कायराना ही सही पर वास्तव में ये पाक की युद्ध की रणनीति रही है कि एक ओर  तो वो हिना रब्बानी जैसे लोगों को विदेश-मंत्री के तौर पर भारत भेजता है जो यह साबित  की कोशिश करते हैं कि वो भारत के साथ शांति चाहते हैं तो दूसरी तरफ वो हमला करके भारतीय सैनिकों का स

31st Day :: & now mixing in thoughts

हम लोग अभी तक audio-mixing ,  video-mixing और खाने-पीने की चीजों में विभिन्न प्रकार की मिलावट से ही दो-चार होते रहे हैं। मगर दूसरी technologies की तरह mixing की technology भी उन्नति कर रही है। मैं आजकल एक नए तरह की मिलावट से रूबरू हुआ, यह थी हमारे महापुरुषों के विचारों में मिलावट! जी हाँ आपने बिलकुल ठीक सुना , आजकल news में भड़काऊपन और महापुरुषों के विचारों में confusive & abeted thoughts की मिलावट चल रही है। हमारे पास का mixer-grinder फलों और दूध को या फिर अलग-अलग चीजों को पीसकर मसाला बनाने के ही काम आती है, मगर हमारे नीति-नियन्ताओं के पास ऐसा mixer होता है कि ये किसी भी चीज में किसी भी चीज को इस तरह मिला सकता है कि बड़े से बड़ा जाँचकर्ता भी इस मिलावट को न पकड़ सके। वैसे तो ये सब कई दिनों से चल रहा है, मगर मैं आज की ताज़ा खबर के बारे में ध्यान आकृष्ट करना चाहूँगा- अमर-उजाला के पेज-13 पर स्वामी विवेकानंद जी के बारे में लिखा है कि वो 31 बीमारियों से ग्रसित थे और उन्हें मधुमेह भी था। इसी वजह से 39 साल की अल्पायु में उनकी मौत हो गयी और interesting बात यह है कि यहाँ लेखक के माध्यम से य

30th Day :: Hindi vs English medium education

आजकल जब मैं किसी parent को अपने छोटे बच्चे को यह सिखाते हुए देखता हूँ कि 'बेटा  वो Dog है, that is Cow, this is potato, you are eating tomato' etc तो मुझे यह सोचकर दुःख होता है कि क्या हमारी मातृभाषा इतनी बुरी है कि हमें अपनी बेसिक चीजों के नाम भी हिंदी में लेने में शर्म आती है।  वास्तव में english  medium सिर्फ़ status-symbol ही नहीं है बल्कि एक ऐसी मानसिकता है जो अंग्रेजों ने सैकड़ों वर्षों के शासन काल में हमारे दिमाग में भर दिया है कि english, high-profile लोगों की भाषा है और हिंदी निम्न वर्ग  की। सोचिये जरा कि english-medium schools में पढ़ने वाला ऐसी मानसिकता   का बच्चा चाहे जितना भी पढ़ ले, हिंदी-भाषियों के साथ कैसा बर्ताव करेगा और क्या कभी आम लोगों के लिए कुछ करने का जज़्बा उसमें होगा? ऐसा नहीं है कि मैं english का oppose कर रहा हूँ। भले ही अंग्रेज़ बुरे थे लेकिन english ने हमें एक ऐसा माध्यम दिया है जिससे global-communication आसान हो गया है। मुझे english के हमारी नंबर दो भाषा बनने पर ऐतराज़ नहीं है लेकिन मैं इतना ज़रूर चाहता हूँ कि यह हमारी basic language न बन जाए और हिंदी

29th Day :: Think above the skirt

आजकल rape-victim की मौत से पूरे देश में शोक और आक्रोश का माहौल है। बेशक मुझे भी इस घटना से बेहद दुःख पहुँचा है। फिर भी आज मैं एक ऐसी बात लिखने की हिम्मत कर रहा हूँ जिस पर बहुत से लोगों को आपत्ति होगी। आजकल स्कूलों में लड़कियों के स्कर्ट (या कहें कि mini-skirt ) पहनने के ऊपर विवाद चल रहा है। बिना किसी का पक्ष लिए मैं यह कहना चाहूँगा कि भले ही स्कर्ट का सम्बन्ध rape से न हो लेकिन क्या कोई मुझे यह बताएगा कि स्कूलों में इस तरह के dress का क्या use  है? चलिए मैं यह भी मान लेता हूँ कि इसका सम्बन्ध sexual orientation से नहीं है और इससे पढ़ाई के समय दिमाग divert नहीं होता फिर भी इतना तो आपको भी मानना पड़ेगा कि यह public schools के show-off का माध्यम है। मेरा कहना है कि schools में dress code ऐसा होना चाहिए जो show-off को नहीं बल्कि सादगी को प्रदर्शित करता हो! जिससे पढ़ाई का माहौल बनाने में मदद मिले और students की पढ़ाई में एकाग्रता बढे। जो महिलायें इसपर विरोध जता रहीं हैं उनसे मेरा विनम्र निवेदन है कि इसे महिलाओं की स्वतंत्रता का हनन न समझें। नारी-स्वतंत्रता का मतलब यह नहीं है कि आप सार्वजनिक